गुझिया बनकर है तैयार

 

 
होली का मिठास लिये लो
गुझिया बन कर है तैयार

चूड़ी बेलन पूड़ी गोल
देते मधुर स्वाद का भान
मादकता फागुन की ऐसी
मन में जाने क्या ली ठान

चाकू छुआ नैन नज़र से
तेज चली सीने में धार

खोया मेवा घी टपकाता
अधरों पर खुशियों के भाव
सपने रंग भरे नैनों में
मूरत कर देने का चाव
गूँथा आटा प्रीति-सलिल में
कर-कोमल कितने होशियार

झाँकें चाँद रसोई सूँघे
चंद्र-प्रभा भी खूब लजाई
तारे बैठ गगन में देखें
आती थाली सजी सजाई
रूप रंग रस गंध लुटाती
गुझिया बन कर आई नार

- हरिहर झा
१ मार्च २०२१

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