तुम्हारे हाथ की गुझिया

 

 
आ रही फिर याद रह-रहकर
माँ तुम्हारे हाथ की गुझिया

द्वार पर आई-गई बारात
कितनी बार बचपन की
आँगने के बीच लगती होड़
छुटपन की

कौन कितनी शीघ्रता से
लपक ले थरिया
माँ तुम्हारे हाथ की गुझिया

घुल गया है अनकहा-सा स्वाद
मीठे तार बजते हैं
आयु बीती पर वही सम्वाद फिर
अनुवाद करते हैं

ठुनकती हर साल बनठन
बुढ़िया बनी गुड़िया
माँ तुम्हारे हाथ की गुझिया

हाथ में सजने लगे बाज़ार
खोजे कौन अपनापन
मायके से अब न आता थाल
भर पकवान सझधज कर

कोठरी में टाँग दी
रिश्तों भरी झुलिया
माँ तुम्हारे हाथ की गुझिया

- भावना तिवारी
१ मार्च २०२१

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