मजे की गुझियाँ

 

 
अरर अरर होली की धुन
सुन मेरी बहना, भाभी सुन

मावे की है, सूजी की
मज़े की गुझियाँ भौजी की
इनमें काजू किशमिश भी
खाने की पर, बंदिश भी

खाले बेटा जी भर के
काहे करता है भुन भुन

भरर भरर जीजा साले
मुखड़े हैं रंग से काले
मस्ती में बौराते सब
खाएँ गुझियाँ छक के जब

फगुनाहट सर चढ़ बोले
लगे तेल में छौंका छुन

घरर घरर भँग का लोटा
भैया घर में टुन्न लौटा
भौजाई ले ख़ूब खबर
जाने किस पर टिकी नज़र

पीले राजा दबा के तू
ठंडाई में बड़े हैं गुन

सरर सरर है हवा चली
धूल उड़ी मुँह भाल मली
साँझ ढले पी घर आवे
बात करे मन को भावे

आएँगे वे शाम ढले
ख्वाब कोई तू मन में बुन

- आभा सक्सेना दूनवी
१ मार्च २०२१

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