गुझिया का जो भी मिले, रसना
को रस-स्वाद
उसी स्वाद सा मिष्ट है, होली का आस्वाद
होली का आस्वाद, प्रेम, सौहार्द, मिलन का
जोड़े प्रेमिल तार, मनुज के मन से मन का
बुद्धि, हृदय, मन, प्राण, सभी की शुद्धि-क्रिया का
होली है त्यौहार, मधुर रस की गुझिया का।।
तन के भीतर ही बसे, रसमय कोमल सत्व।
ज्यों गुझिया के पेट में, रहता मीठा तत्व
रहता मीठा तत्व, बदन है मात्र आवरण
ज्ञानयोग से आत्म मिले, यदि शुद्ध आचरण
आत्मा निर्मल शुद्ध, ईश का जीव अंशधर
निर्विकल्प, अभिराम, बसे जो तन के भीतर
गुझिया खाकर भंग की, रामभरोसे मस्त
नशा चढ़ा तो हो गयी, हालत उनकी पस्त
हालत उनकी पस्त, बाँसुरी पड़ी सुनाई
रंग -रंग के दृश्य, आँख को पड़े दिखाई
पत्नी सम्मुख देख, छू लिए पग, झुक जाकर
कहा 'बहिनजी नमन' भंग की गुझिया खाकर