अजब निराली शान

 

 
होली पर यूँ तो बनें, कितने ही पकवान
लेकिन गुझिया की रहे, अजब निराली शान

गुझिया खोये की रहे, चाहे गुड़ की होय
महापर्व पर रंग के, रंग प्रेम का बोय

दूकानों में यूँ तो सजी,गुझिया बनकर खास
घर जैसी लेकिन कहाँ, उनमें मिले मिठास

गुझिया-पापड़-कुरकुरे, चिप्स-पकौड़े संग
संगी-साथी जुट पड़े, भंग दिखाये रंग

थोड़ा-थोड़ा खाइये, चाहे जी ललचाय
ज्यादा गुझिया पेट को, बड़ा दर्द दे जाय

बन सकती है हर समय, जब भी चाहें आप
गुझिया होली की मगर,छोड़े मन पर छाप

अम्मा गुझिया तल रही, बना रहे सब लोग
साथ हिदायत दे रहीं, पहले प्रभु का भोग

बाबूजी को है शुगर, मगर कौन समझाय
पाकर गुझिया की महक,उनसे रहा न जाय

घर भर में रक्खे सजे,इत-उत सब पकवान
लेकिन है सबका कहाँ, गुझिया जैसा मान

- सुबोध श्रीवास्तव
१ मार्च २०२१

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