गुझिया की मनुहार

 

 
होली पे सब रंग हों, मिलने को तैयार
रिश्ते मीठे कर रही, गुझिया की मनुहार

तेल उबलकर कह उठा, न्याय करे सरकार
गुझिया को ही क्यों मिले, संरक्षण-अधिकार

कूद पड़ी मैदान में, गुझिया थी तैयार
संघर्षों के तेल से, किये हाथ दो-चार

चखकर गुझिया झूमते, जैसे तन-मन-गात
भाँग-ठँडाई में कहाँ, ऐसी होती बात

कहने को कुछ भी कहो, गुझिया हो या 'रीत'
ऊपर से हैं खुरदरी, अंतस मावा मीत

- परमजीत कौर'रीत'

१ मार्च २०२१

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