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गुझिया बिन होली नहीं |
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गुझिया बिन होली नहीं, चाहे
छप्पन भोग
इक दूजे का साथ ही, बना सुघर संयोग
सादी भूरी केसरी, हो बाहर का रूप
पाग पगी अंतस भरे, मेवों युक्त स्वरूप
दिख जाए जो सामने, गुझियों वाला थाल
रोके से रुकता नहीं, मन हो अति बेहाल
ठंडाई काँजी सहित, साथ मिले जब भंग
होली की बैठक सजे, जमे तभी सब रंग
रंग अबीर गुलाल हो, गाएँ फगुआ साथ
मन होता है तृप्त जब, गुझिया हो भर हाथ
त्योहारों की धूम हो, मिल अपनों के संग
कोरोना ने डाल दी, खुशी रंग में भंग
अब गुझिया से हम करें, सबको दें उपहार
होली का संदेश ही, सब मिल बाँटें प्यार
- ज्योतिर्मयी पंत
१ मार्च २०२१ |
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