|
यदि गुझिया
रसदार न होती |
|
|
यदि गुझिया रसदार न होती
होली मधुरिम यार न होती
खोए जैसे लोग मुलायम
बहती सुखद बयार न होती।
छन्न कड़ाही में पकती है
गरमागरम बहार न होती
रार, दुश्मनी कैसे घुलती
मीठी गजब कटार न होती
होकर खास चहेती सबकी
सात समंदर पार न होती
झोली भरकर खुशी न मिलती
जो गुझिया दिलदार न होती
- प्रो. विश्वम्भर शुक्ल
१ मार्च २०२१ |
|
|