होली की गुझिया

 

 
जब भी सम्मुख आ जाती, होली की गुझिया
मुँह में ये पानी लाती , होली की गुझिया

जीवन की आपा धापी, में भूला रहता
माँ की यादें ले आती, होली की गुझिया

बिन परिश्रम मीठा फल, पाना है मुश्किल
जीवन दर्शन सिखलाती, होली की गुझिया

उत्सव के पहले घर में, ले आती उत्सव,
जब चौके में गंधाती, होली की गुझिया

दादी, ताई, चाची, माँ, मिलजुल कर बैठें,
हँसते गाते बन जाती ,होली की गुझिया

परदेशी बेटा बेटी, बेबस माँ ममता,
बरबस पुल सी बन जाती, होली की गुझिया

जब तक रहती है बाकी, भोजन उसका ही,
बच्चों को इतनी भाती, होली की गुझिया

कुछ मीठे संदेशे भी, लाती ले जाती,
इक दूजे के घर जाती, होली की गुझिया

अमित इधर नज़्म गढ़ते, बीबी चौके में,
पहले किसकी बन पाती, होली की गुझिया

- अमित खरे
१ मार्च २०२१

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