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गुझिया से
परिवार |
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बचपन से बनते देखा है, जाने
कितनी बार
कभी न उकताया भरपाया, गुझिया से परिवार
लिपटी बूरे घी की रोटी सा आता है स्वाद,
त्योहारों पे बनती सौंधी, गुझिया सदाबहार
चार मिठाई बनतीं उनमें, गुझिया होती एक,
त्योहारों में होता उस पर शंख चक्र शृंगार
आधा चंदा पड़े दिखाई नभ पर जैसे रात,
वैसी गुझिया बनती होती है कंगूरेदार
आटे मिश्री, खोया मेवा, का भरते हैं कूर,
त्योहारों पर अकसर घी में, बनती चाहे चार
घर-मंदिर में अन्न कोट या बनता छप्पन भोग,
बिन गुझिया के सूना है हर, व्यंजन का दरबार
बात मिठाई की हो घर की, है गुझिया का राज,
शायद ही घर हो ना मनता गुझिया बिन त्योहार
- आकुल
१ मार्च २०२१ |
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