पकौड़ों का शुक्रिया

 
  वर्षा आई वर्षा आई चूल्हे पर फिर चढ़ी कढ़ाई
घर वाले सब हुए इकट्ठे बेसन की तब
शामत आई

अलमारी से तेल निहारे गोभी काँपे डर के मारे
मिर्ची पर चाकू का हमला किस्मत के
मारे है सारे

धनिये की भी किस्मत अपनी बनना है उसकी भी चटनी
प्याज़ सभी को लगा रुलाने जैसी करनी
वैसी भरनी

इन सबने, बलिदान दिया जब और चाय ने साथ दिया तब
बने पकौड़े सम्मुख आए संग सॉस के
खा डाले सब

नभ में बादल जब छाते हैं, रिमझिम पानी बरसाते हैं
उस मौसम में गरम पकौड़े, बड़े चाव से
सब खाते हैं

बेसन, प्याज़, मिर्च और धनिया, गोभी, नमक, तेल के भजिया
है मानव को तोहफा प्यारा, बहुत पकौड़ों
का है शुक्रिया

- शरद तैलंग
१ जुलाई २०२४

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