गरम पकौड़े तले जा रहे

 
  चढ़ी कढ़ाई फिर चूल्हे पर
गर्म पकौड़े तले जा रहे

लड़की हुई जवान पिता की नींद नदारद
आये दिन लड़के वालों की
घर में आमद

कोई तो सीरत देखेगा
कोई अंतर्मन परखेगा
माँ बाबा की आँखों में ये
स्वप्न सलोने पले जा रहे

पाँच बेटियों में ये तो पहली बेटी है
घर की माली हालत भी
औंधी लेटी है

देन लेन की बातचीत पर
सुई अटक जाती है आकर
लड़की की पीड़ा बिसरा कर
दौर चाय के चले जा रहे

पर्दे, मेजपोश सामान उतार रहे हैं
मन ही मन, मन को कितना
सब मार रहे हैं

रंग दबा है, कद छोटा है
नैन नक्श मोटा मोटा है
यों ही दस-दस ऐब गिनाकर
हाथ जोड़कर छले जा रहे

- निशा कोठारी
१ जुलाई २०२४

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