गर्म पकौड़ी

 
  रिमझिम हो, बारिश भी हों
चाय केतली में गरम गरम हो
कुछ उलझे सुलझे से अल्फाज़ हों
जगजीत जी के साज हों
शाम हो, पकौड़ों की फिर बात हो

मूँगफली के भुने दाने हों
छुट्टी मना लूँ कोई बहाने हो
तबीयत कुछ हो नासाज़-सी
कुछ जीने के अफ़साने हों
खा लूँ, पकौड़े गर गरमा गरम हों
ठंडी हवाओं का बहना हो, फिर उस पर बौछार हो
दिन हो या रात हो
तरुनम मे कोई राग हो
ले आओ, पकौड़े अगर गरम हो

बिजली कौंधती हों फ़िज़ाओं में
किटकिटाते से दाँत हों
सर्दी का आगाज हो
एहसास कहीं डूबे हों
खुशियों के कुरकुरे पकौड़े हों
तल लो हालात के तेल में

- मंजुल भटनागर
१ जुलाई २०२४

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