खिलाओ पकौड़े

 
  रिझाओ, मनाओ, खिलाओ पकोड़े
मगज खा रहे आज सैंया निगोड़े

हरी, लाल चटनी मिलाकर परोसो
ओ’ फिर पास आओ, मगर थोड़े-थोड़े

मुहब्बत में इक दौर ऐसा भी था जब
बसिक दिल की ख़ातिर कई दिल थे तोड़े

मिलेगा नहीं अब मेरा वोट तुमको
भले तुम रहो रात-दिन हाथ जोड़े

चटाचट सटासट करो चाय पानी
ख़बरदार गर कोई रत्ती भी छोड़े

अजी आप भी आइए, खाइए कुछ
कहो क्यूँ हो नाराज़? मुँह क्यूँ हो मोड़े?

नहीं काम करना है तो साफ़ कह दो,
बना लेंगे हम ख़ुद, न समझो भगोड़े।

- विनीता तिवारी
१ जुलाई २०२४

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