अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

शीशम रूप तुम्हारा
 
आँधी तूफानों से लड़कर
हिम्मत कभी न हारा
कड़ी धूप में तपकर निखरा
शीशम रूप तुम्हारा

अजर अमर है इसकी काया
गुण सारे अनमोल
मूरख मानव इसे काटकर
मेट रहा भूगोल
पात पात से डाल डाल तक
शीशम सबसे न्यारा

धरती का यह लाल अनोखा
उर्वर करता आँचल
लकड़ी का फर्नीचर घर में
सजा रहे हैं हर पल
जेठ दुपहरी शीतल छाया
शीशम बना सहारा

सदा समय के साथ खड़ी थी
पत्ती औ शाखाएं
रोग निवारक गुण हैं इसमें
सत, अवसाद भगाएं
कुदरत का वरदान बना है
शीशम प्राण फुहारा

वृक्ष संचित जल से ही मानव
अपनी प्यास बुझाता
प्राण वायु की, धन दौलत का
खुद भक्षक बन जाता
हरियाली अनमोल धरोहर
शीशम करे इशारा

- शशि पुरवार
१ मई २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter