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शीश उठा शीशम हँसे
 

शीश उठा शीशम हँसे, बन मतदाता आम
खटिया खासों की खड़ी
हुआ विधाता वाम

धरती बनी अलाव सूरज आग उगल रहा
नेता कर अलगाव जन-आकांक्षा रौंदता
मुद्दों से भटकाव जन-शिव जहर निगल रहा
द्वेषों पर अटकाव गरिमा नित्य कुचल रहा

जनहित की खा कसम कहें सुबह को शाम
शीश उठा शीशम हँसे
लोकतंत्र नाकाम

तनिक न आती शर्म शौर्य भुनाते सैन्य का
शर्मिंदा है धर्म सुनकर हनुमत दलित हैं
अपराधी दुष्कर्म कर प्रत्याशी बन रहे
बेहद मोटा चर्म झूठ बोलकर तन रहे

वादे कर जुमला बता कहें किया है काम
नोटा चुन शीशम कहे
भाग्य तुम्हारा वाम

- संजीव वर्मा सलिल 
१ मई २०१९

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