|
सम दुखियारे |
|
काका मैं, शीशम
दो समदुखियारे
जीवन महुआ जैसा
थू थू कड़वा
चिलचिलाती धूप
छोड़ गया भडुवा
छैयाँ दी वे, दुर्जन निकले सारे
नीलकण्ठ हैं हम
खींच जहर लेने
दर्द पी गये
औषध बन सुख देने
पाकर चैन वे डाल गये किनारे
अकड़न गई फिसल
शरीर में वैसे
टहनी काटी,
कटी धमनियाँ जैसे
फैंका ज्यों कबाड़, घाव दिये गहरे
चले गये
वही हमारी हत्या कर
दी जिनको
सारी उर्जा जीवन भर
भुला न पाये, हम, वे दिल से प्यारे
- हरिहर झा
१ मई २०१९ |
|
|
|
|