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ओ शीशम
 
ओ शीशम
हवा की लय पे लहरते शीशम
तुम यों ही नहीं
सिंधु-गंगा की गोद पले
बड़े उपकारी
हो दिल के भले
लगते ही पलकों पे फाये की तरह
लतीफ़ पत्तियों के लम्स
पी लेते हैं सारी पीर
रूप गढ़ते हैं दिलफ़रेब कई
तुम्हारे बाज़ू
भरी फलियाँ गुछे फूल भूरी छालें
या यूँ कहें कि
सर से पाँव तलक तुम्हारा
ये बादामी तन
अता करता है शिफ़ा
तबीब हो कोयी चरक से तुम
ओ फ़बेशी घराने के डलबर्जिया
मरासिम अपने यूँ ही हरे रहें हरदम
इस ज़मीं पे इक मसीहा हो तुम शीशम...!!

- सूर्यप्रकाश सूरज
१ मई २०१९

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