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जवाहरबाग जीवन
 
इस जवाहरबाग जीवन में
सिरिस के फूल-सपने

रैलियों के दाँत झुग्गी में
बहुत गहरे धँसे है
एक अरसा हो रहा जब
दिन यहाँ खुलकर हँसे हैं

रोशनी के नाम पर बस
तेज तपती धूप बँटती
और तनते टेन्ट देते
हैं नहीं छाले-झलकने

दिग्विजय की चाह
चीखों में कसैलापन घुला है
हैकरों का दल समय को
हैक करने पर तुला है

आस्था के बन्द कमरे
और सड़कों पर अँधेरा
नहीं रोई,हँसी चिड़िया
देख कटते पंख अपने

- शुभम् श्रीवास्तव ओम
१५ जून २०
१६

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