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फूल शिरीष
 

पत्ती-पत्ती छाँव बिछाएँ
धूप किरन को गले लगाएँ
बड़े सनेही फूल शिरीष

रेशा-रेशा रेशम सा तन
धुला-धुला सा निर्मल मन
श्वेत गुलाबी छतरी ताने
गुच्छा-गुच्छा रहे मगन

भरी दुपहरी रस्ता-रस्ता
अभिनन्दन में हाथ हिलाएँ
बच्चों जैसे फूल शिरीष।

सूरज जितना ताप तपाए
फूल-पात की गंध न सोखे
आग-उमस का जेठ महीना
रंग रूप में सजते चोखे

धूल औ माटी धरे अधर पर
जीवन भर जी भर मुस्काएँ
कृषकों जैसे फूल शिरीष

शाख झूलना बैठे झूले
कुछ पल पंछी उड़ना भूले
काँपे-सिमटे कुछ डर जाएँ
पवन झकोरा जब भी छू ले

दोना-दोना बरखा बूँदें
जोड़-जोड़ बाँटें बिखराएँ
बाल सखा से फूल शिरीष

- शशि पाधा

१५ जून २०
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