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शाबाश शिरीष
 
अन्यायों के आगे तुमने
नहीं निपोरी खीस
इस मौसम में ऐसी रंगत!
है शाबाश शिरीष!

हर संघर्ष उगा देता है
करतल पर उम्मीदें
हाड़तोड़ मेहनत के दिन
लाते हैं अच्छी नींदें

यही दुआ है कभी हौसला
पड़े नहीं उन्नीस

लू की अब क्या बात करें
है हवा हो गई लावा
मगर नहीं कमज़ोर पड़ा है
हरियाली का दावा

हमको भी दे दो तुम खुलकर
खिलने का आशीष!

माथे से बह रहा पसीना
भी कितना शर्माया
जब थी सबसे अधिक जरूरी
तब तुमने दी छाया

दवा बहुत अच्छी देते हो
लिये बिना ही फीस!

- रविशंकर मिश्र रवि

१५ जून २०
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