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शिरीष तुम सखा हमारे |
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ओ
शिरीष,
तुम सखा हमारे,
तुम्हें भुला ना पाएँगे!
तुम्हें धूप से
नहीं शिकायत,
धूप तुम्हें दुलराती है!
गरम हवाएँ अपनेपन से,
तुम्हरी लटें हिलाती हैं!
कहती हैं,
सूखी फलियों का,
हम झुनझुना बजाएँगे!
उल्लू भी
बसते हैं तुममें,
तोते भी भरते किलकारी!
भाँति-भाँति के कीट-पतंगे,
चखते हैं मधु की तरकारी!
कहते हैं,
अपने जीवन का,
हर पल यहाँ बिताएँगे!
धरती देती
तुमको पानी,
तेरे फूल खिलाने को!
या फिर अपना गात सजाकर,
अपना मन महकाने को!
संत छाँव में
आकर तुम्हरी,
कुटिया एक बनाएँगे!
- रावेंद्रकुमार रवि
१५ जून २०१६ |
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