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हम तो है शिरीष
 
जेठ दुपहरी तपती है तो
तप ले लेकिन
हम तो हैं शिरीष
फूलेंगे और फलेंगे!

लू-लपटों से हम केसर का
रस लेते हैं
धूल उड़ाते मौसम को
सरसा देते हैं
छोटे-छोटे चन्द्र उगाते
हैं डालों पर
ग्रीष्म! तुम्हारी छाती पर
हम मूँग दलेंगे!

पकी हुई फलियाँ ‘खड़-खड़’
मंजीर बजातीं
नयी कोपलों को आने को
शीघ्र बुलातीं
पीढ़ी-दर-पीढ़ी यों ही
चलता आया है
नयी पौध के साथ पुरातन
खूब पलेंगे!

हम अवधूत, नहीं कुछ रखते
अपने घर में
क्षर हैं, फिर भी रक्षित हैं
अक्षर-अक्षर में
वर्षा, शरद, वसंत सभी
ऋतुओं में हम तो
जीवन का उल्लास बाँटते
हुए चलेंगे!

- राजेन्द्र वर्मा
१५ जून २०
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