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खिल रहा उन पर शिरीष |
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सचमुच एक
पहेली लगते
ये शिरीष के फूल
कोमल, तितली के पर का भी
उठा न पाते भार
पर सूरज से आँख मिलाते
नहीं मानते हार
कड़क धूप में तन कर रहते
ये शिरीष के फूल
तपती धरा सुलगता अम्बर
मौसम की मनमानी
रिमझिम-रिमझिम बूँदों की भी
अपनी अलग कहानी
दुनिया रंग-रँगीली कहते
ये शिरीष के फूल।
जी करता गायें, बतियाएँ
बैठ सिरस की छाँह
झूला झूलें थामें फिर से
इक दूजे की बाँह
बिछुड़ी हुई सहेली लगते
ये शिरीष के फूल
यह दुनिया, चलता रहता है
सबका आना-जाना
जब तक तन है नहीं भूलना
भीनी महक लुटाना
अवधूतों से स्थिर रहते
ये शिरीष के फूल
- मधु प्रधान
१५ जून २०१६ |
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