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सिरसा इधर उदास है
 
कड़ी धूप सह हँसनेवाला
सिरसा इधर उदास है

देख सिमटता अपने कुल को
चिंता मन में छाई
गौरैया का भी आना कम
कौन करे भरपाई?

धूल-धुएँ के चक्रव्यूह में
उलझ गया उल्लास है

हतप्रभ है, जो औषधि बनकर
फैल रहा था जग में
बाँध दिये क्यों उसके ही पग
इंसानों ने मग में?

हरा-भरा बीता कल सुख का
एकमात्र आभास है

चलो बँधाएँ थोड़ा ढाढस
कर्म करें कुछ ऐसे
मुँह फेरे मत खड़े रहें हम
नित्य कृतघ्नों जैसे

प्रकृति के इन दूतों से ही
जीवन का विश्वास है

- कुमार गौरव अजीतेंदु
१५ जून २०
१६

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