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शिरीष के फूलों जैसा होना
 
कितना मुश्किल है
शिरीष के फूलों जैसा होना
कर्म योग है नस-नस में तो
क्या जगना क्या सोना

मौसम है कैसा? चलती है
बस लू की मनमर्जी
साथ निभाने को आई
अंधड़ की भी अर्जी
गर्म हवाओं का मकसद है
अफवाहों को ढोना

इतने पर भी खिल जाती हैं
कलियाँ नई-नवेली
थकती नहीं सुगंध निरन्तर
चलती रहे अकेली
निश्चित ही महकेगा अब
धरती का कोना-कोना

सच होगा सपना शिरीष ने
मन में ठान लिया है
तेज धूप में छाया को
खुलकर सम्मान मिला है
तुम तपती हुई रेत पर उगना,
हरियाली बोना

- कृष्ण कुमार तिवारी

१५ जून २०
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