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गर्मी में खिला शिरीष
 

गर्मी की
तपती दोपहरी में
जब चलते लुआरों में
झुलस जाती है
सारी कोमलता
फूल तो फूल
जब पत्ते तक
मुरझा जाते हैं
तब उस भराभर
गर्मी में खिला शिरीष
कहता है मुझसे-

वर्षा की फुहारों से
भीगकर तो
हरिया जाती है
घास भी
पर मैं अपने भीतर का
सारा रस लुटाकर
सूरज से मिलाकर आँखें
मुसकराता हूँ
जिंदगी रोने का नहीं
खिलखिलाने का नाम है
यों खिलकर मैं
यही तो बताता हूँ

- उर्मिला शुक्ल  
     
१५ जून २०
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