अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

शिरीषों से मिले
 

जेठ की तपती दुपहरी में बहारों से मिले
हम सुकोमल फूल पहने जब शिरीषों से मिले

फूल सरगम स्वर सरीखे पत्तियाँ लयकारियाँ
हम शिरीषों के तले मीठे तरानों से मिले

किस तरह कठिनाइयों को कर लिया जाए सरल
सीख इनकी झूमती बेफ़िक्र डालों से मिले

जब भी देखा है तुम्हें जी भर के ऐ प्यारे विटप
यों लगा सेहरा में हम पानी के धारों से मिले

रास्ता कैसा भी हो कट जाएगा आराम से
हमसफ़र तुमसा अगर हर बार राहों में मिले

फ़िक्र होती है कहीं ऐसा न हो जाए कभी
ज़िक्र इनका बस पुरानी कुछ किताबों में मिले

- सोनरूपा विशाल  
 
१५ जून २०
१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter