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धरती का है शृंगार
 

कोमल है ये कमजोर नहीं, धरती का है श्रृंगार सखी
अनुपम इसकी सुंदरता है, अप्रतिम इसका संसार सखी

जलती धरती तपता मौसम, ये अडिग अटल लहराता है
है कालजयी अवधूत सिरस, देना इसका व्यवहार सखी

हो फूल, छाल, पत्ती या जड़,हरता पीड़ा के सारे क्षण
अँग अँग में औषधियों के गुण, करता सबका उद्धार सखी

है लाल सफेद कहीं पीला, जैसे फूलों का हो मेला
भीनी भीनी मोहक खुशबू, लगता आये त्यौहार सखी

बाजें सूखी फलियाँ छनछन, दौड़े ज्यों वासंती तुरंग
बंजर में फूल खिलाता है, माटी को ये गलहार सखी

सीखो कठिनाई में जीना, हँस हँस कर हर दुख को सहना
कहता है हमसे सिरस यही, प्रभु का सुंदर उपहार सखी

बन सिरस चलो अब महके हम, सुख हो या दुख बस चहके हम
अपनाओ गुण मानवता का, जीवन का ये आधार सखी

- डॉ क्षिप्रा शिल्पी  
 
१५ जून २०
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