तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक
स्नेह-सलिल सिंचन करें,
महकें सुमन अनेक...मन-वृन्दावन में बसे,
कोशिश का घनश्याम.
तन बरसाना राधिका,
पाले कशिश अनाम..
प्रेम-ग्रंथ के पढ़ सकें,
ढ़ाई अक्षर नेक.
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.....
कंस प्रदूषण का करें,
मिलकर सब जन अंत.
मुक्त कराएँ उन्हें जो
सत्ता पीड़ित संत..
सुख-दुःख में जागृत रहे-
निर्मल बुद्धि-विवेक
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक...
तरु कदम्ब विस्तार है,
संबंधों का मीत
पुलक सुवासित हरितिमा,
सृजती जीवन-रीत..
ध्वंस-नाश का पथ सकें,
निर्माणों से छेक
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो लगायें एक...
--आचार्य संजीव सलिल
१३ जुलाई २००९ |