कदंब के पेड़ के पत्ते हमेशा लहलहाते हैं
कभी तो ऐसा लगता है धूप को मुँह चिढ़ाते हैं
कदंब के पेड़
का रिश्ता पुराना है कन्हैया से
उन्हीं के प्रेम के किस्से परिंदों को सुनाते हैं
सुना है आज भी आवाज़ आती है फ़िज़ाओं में
कभी राधा बुलाती है कभी कान्हा बुलाते हैं
कभी कालिंदि कूलों को लगा करता है रातों में
कन्हैया खिलखिलाते हैं कभी बंसी बजाते हैं
कदंब के पेड़ हैं तो ग़म भला कैसे सताएगा
पखेरू घोंसला यह सोचकर इनपर बनाते हैं
हमें महसूस होता है हमेशा देखकर इनको
प्रेम का पाठ दुनिया को बिना बोले पढ़ाते हैं
पीतांबर की तरह पीले जो इनके फूल हैं 'घायल'
कृष्ण की याद दुनिया को हर इक लम्हा दिलाते हैं
--राजेन्द्र पासवान घायल
१३ जुलाई २००९ |