सावन बीता बादल का कोप नहीं रीता जाने कब से वो बरस रहा ललचाई आँखों से नाहक जाने कब से तू तरस रहा मन कहता है छू ले कदंब फूले कदंब झूले कदंब
--नागार्जुन १३ जुलाई २००९
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