खिले कदम्ब
झूमा मानव-मन
मिले कदम्ब।गहरी जड़
मज़बूत है तना
फ़ैली डालियाँ।
चहचहाते
पंछी, पत्ते बजाते
मिल तालियाँ।
झूमे कदंब
उछलकर नभ
चूमे कदम्ब।
फूलों के गोले,
सुवासित बसंती
बोलें अबोले।
हवा के संग
झूमें-नाचें, परिंदे
ज्यों पर तोलें।
डरे कदंब
मनुज दनुज से
मरे कदम्ब।
पत्ते हिलायें,
करें अभिवादन
मित्र बनायें।
थोड़े मानी हैं
अवढरदानी हैं
कोष लुटायें।
जियें कदम्ब,
सेवाभाव की सुरा
पियें कदम्ब।
--आचार्य संजीव सलिल
१३ जुलाई २००९ |