मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं गोकुल गाँव के
ग्वालन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।
- रसखान
ठौर-ठौर बृन्दा विपिन, कदम बिरिछ सब आहिं।
कदम-कदम तर सांवरे, कदम-कदम चलि जाहिं।
-- डॉ. राजेश दयालु 'राजेश'
१३ जुलाई २००९ |