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क्षणिकाएँ

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१. पलाश का गार्ड

रेलगाड़ी आती है
और बिना रुके चली जाती है
जंगल में
पलाश का एक गार्ड
लाल झंडियाँ दिखाता रह जाता है।

-- उदय प्रकाश

२. पलाश
पत्ते गिर रहे हैं
खहरा खहरा कर वन-वृक्षों के
पर पलाश हँसते हैं

--त्रिलोचन

३. वही पलाश

सौंदर्य के प्रतीक
हो गए हो तुम विलुप्त
देख तुम्हें मन खुश हो जाता
भूली बिसरी आस
तुम हो वही पलाश

--कुसुम ठाकुर

४. पलास

कठिनतम बेशक समय हो
फूल फिर खिलने लगे हैं
और हर पल-
आस का पर्याय बनकर
आसमानों से गले मिलने लगे हैं।

--पूर्णिमा वर्मन

५. पलाश

न जाने किस
पछतावे की आग में जलता
लाल फूलों से दहकता

--मीनाक्षी धन्वंतरि

६- हे ढाक

मैं एक बटोही
ठिठककर तुझे रहा ताक
तू कौन है रे
क्या जीवन का वसंत है
या युवावस्था में ही संसार तज
जोगिया वस्त्र धारण कर खड़ा संत है?

--अजय शर्मा

२० जून २०११

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