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मेरा
मन खिलता पलाश |
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प्रिय मेरा मन खिलता पलाश !
मैं मुक्त गगन के आँचल पर चाहत का रंग लगा बैठी
साँसें बसंत सी महकी थीं, धड़कन का दाँव लगा बैठी
अमराई की भानी खुशबू, उर में भरती शीतल उच्छ्वास
प्रिय मेरा मन खिलता पलाश !
चटकी कलियों से तरुणाई, फिर ली यादों ने अँगड़ाई
झंकृत कर बैठी अन्तस को, इक मधुर प्रेम की शहनाई
नयनों में मदिरा छलकाये, विश्वास सदा भरता मिठास
प्रिय मेरा मन खिलता पलाश !
पीली सरसों की मोहकता, छू गई आज मेरा आँचल
कलियों की मृदु मुस्कानों ने, भ्रमरों की गति कर दी घायल
कोयल की बल्लभ वाणी से, छाया कैसा नूतन हुलास
प्रिय मेरा मन खिलता पलाश !
फागुन के राग बसंती ने, स्मृति का सागर छलकाया
मादक मादक राकाओं से, नवरूप चाँद का मुस्काया
इठला कर उठी तरंगों को, बाँधे अम्बुधि तट मधुर पाश
प्रिय मेरा मन खिलता पलाश !
बेला, जूही, चम्पा, गुलाब अहसास तुम्हारा देते हैं
चेहरों पर मृदु मुस्कान लिये, कानन में सहज विहँसते हैं
फिर भी पलास का सुर्ख रंग, तेरी आहट की लिये आस
प्रिय मेरा मन खिलता पलाश !
यशोधरा यादव यशो
२० जून २०११ |
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