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फूल ये पलाश के  

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लाए हैं पुन: दिवस आस के, विश्वास के
फूल ये पलाश के

सज गया धरा का धरातल विशेष तौर पर
अलि-पिका के मधुर स्वर आज आम्रबौर पर
लताएं सब लिपट गई हैं,
सन्निकट स्वगाछ से

पीतपत्र झड. गए, छा गए नवल-नवल
स्वच्छ जल के दर्पणों में,रूप देखते कमल
कुमुदिनी के रात-दिन
हो गए सुहास के

पर्णहीन सेमलों में फूल-फूल रह गए
फूल भी तो शीघ्र ही एक-एक झड. गए
पल्लवित-फलित हुए
देख दिन विनाश के

दिक-दिगन्त में छटा है छा गई वसन्त की
बाँधती स्वपाश में हैं, टोलियाँ अनंग की
देखो, दिन ये चार ही हैं,
मधुर मधुरमास के ।

-राममूर्ति सिंह 'अधीर'
२० जून २०११

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