मन गुलाब सा खिल
गया, दहके गाल पलाश
तन के कड़वे नीम से, मीठी उठे सुवास
देह दूधिया कुनकुनी, सेज मखमली घास
सुधियों दहकी गाल पर, फूले फूल पलाश
आया फागुन झूम के मादक हुआ पलाश
धरती नाचे फागड़ी, झूमे झुक आकाश
महका रूप वसंत का, दहके अंग पलाश
फागुन गया रस झरे, नाचे धरनि-अकाश
किरन कुनकुनी भोर की, या रतनारी
शाम
फूली किंशुक डालियाँ, झूमे आठों याम
रूप रंग रस झूमती दहकी किंशुक
डाल
गूँथ रही ऋतुराज के स्वागत में जयमाल
भ्रमर गीत गुंजित सुमन मलय पवन
मकरंद
किंशुक कलि रति काम के, रचती मादक छंद
भ्रमर प्रत्यंचा पर धरे जब पलाश
के वाण
काम विमुग्धा सृष्टि ने रचे प्रीति के गान
कभी ढाक के तीन दल थे खाँखर
अवधूत
पुष्प गुच्छ वैभव धरे अब ऋतुपति के दूत
महके जीवन मंत्र हैं दहके फूल
पलाश
ऋतु के मंगल भाल पर, सिंदूरी विश्वास
वे दिन टेसू लद गए, रहे ढाक के
पात
बन का जंगल राज अब पूछ रहा औकात
यतीन्द्रनाथ राही
२० जून २०११