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घनेरा नीम
 

 

बुरा मत मान गर कुछ देर को चेहरे बिगड़ते हैं
कि मिट्टी धूल में बचपन के सारे दिन सँवरते हैं

पुराने पल वो जिनमें थी बड़ों की डाँट भी शामिल
अभी तक नीम के फूलों से यादों में महकते हैं

परिंदों को घनेरा नीम कितना सर चढ़ाता है
कि जैसे बाप के शानो पे ये बच्चे चहकते हैं

न हो मायूस बीमारी से, हम नुस्ख़े बताएँगे
बुजुर्गों की तरह ये नीम जामुन बात करते हैं

तेरे आगे तो ये झीलें कभी नदिया नहीं होंगी
कहाँ परदा गिराना है मेरे आँसू समझते हैं

कुल्हाड़ी देख कर ये नीम बूढा कुछ नहीं कहता
मगर कुछ आशियाने हैं उजड़ते हैं सिसकते हैं

-सुवर्णा दीक्षित
२० मई २०
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