अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ऐतबार का नीम
 

 

ऐतबार के नीम से
झड़ी कुछ निम्बोरियाँ
आशाओं की
बाँध उन्हें मन पोटली में
मैंने तजुर्बे लिए

कुछ दिन बाद जब
खोली पोटली
तो छिलके गली गुठलियाँ
सूख चुकी थीं
देर तक सूखी पुरानी
नीम की निम्बोरियाँ
देखती रही थीं जो
उम्र की चौखट पर
एक कहानी कहती थी
जाने क्या सोच कर
फिर दबा दी
मन चबूतरे की माटी में और
समय पानी से सींचती रही वर्षों

एक दिन ठंडी हवा के
झोंके से जाग कर उठी
तो देखा मन चौबारे पर
ऐतबार का नीम
पूरी हरियाली के साथ
उग कर फिर
लहरा रहा था
पहले ही की तरह
बुढ़ाई उम्र के आकाश पर!

-डॉ सरस्वती माथुर
२० मई २०
१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter