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नीम हमारी बारहमासी थाती है
 

 

आम–आँवले तो
मौसम के साथी हैं
नीम हमारी बारहमासी थाती है

युगों–युगों से द्वार–
द्वार की शान बने हैं
सिर पर गहरी छाँव उठाये खड़े तने हैं
ठाँव जहाँ तपती दुपहरिया पाती है

पत्ते, फूल और फल
सब वरदान सरीखे
जड़ भी तो बहुमूल्य जड़ी–बूटी सी दीखे
दातूनों की दया दाँत चमकाती है

बाहर से भीतर से
संबल पाता जीवन
करे वायु के साथ रक्त का भी तो शोधन
पग–पग पर सेहत का साथ निभाती है

शाखों पर झूला डाले
जब सावन आये
पेंगो में उड़–उड़ जाये चुनरी लहराये
पुरवाई भी कजरी सुनने आती है

– रविशंकर मिश्र रवि
२० मई २०
१३

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