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नीम छाँव में बैठ के |
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क्या धनमंतर
वैद्य हो, क्या लुकमान हकीम।
दोनों सिर-माथे चढ़ी, रही हमेशा नीम॥
रसा-बसा है नीम में, औषधि का भंडार।
मानव पर इसने किए, कोटि-कोटि उपकार!!
लगा नीम का वृक्ष है, जिसके घर के पास।
जहरीले कीड़े वहाँ, करते नहीं निवास॥
दंत-सफ़ाई के लिए, मिले मुफ़्त दातून।
पैसों का होता नहीं, जिसमें कोई खून॥
कडुवी है तो क्या हुआ, गुण तो इसके नेक।
नीम छाँव में बैठ के, जाग्रत करो विवेक॥
-रमेश शर्मा
२० मई २०१३ |
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