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नीम छाँव में बैठ के
 

 

क्या धनमंतर वैद्य हो, क्या लुकमान हकीम।
दोनों सिर-माथे चढ़ी, रही हमेशा नीम॥

रसा-बसा है नीम में, औषधि का भंडार।
मानव पर इसने किए, कोटि-कोटि उपकार!!

लगा नीम का वृक्ष है, जिसके घर के पास।
जहरीले कीड़े वहाँ, करते नहीं निवास॥

दंत-सफ़ाई के लिए, मिले मुफ़्त दातून।
पैसों का होता नहीं, जिसमें कोई खून॥

कडुवी है तो क्या हुआ, गुण तो इसके नेक।
नीम छाँव में बैठ के, जाग्रत करो विवेक॥

-रमेश शर्मा
२० मई २०
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