अँजुरी में
भर भर सौगात
लुटा रही है दिन औ' रात
बाहर खड़ी सेठानी नीम
जाने क्यों खुश है बेबात
नीम हँसता रहा नीम गाता रहा
नीम दुखड़े सभी के मिटाता रहा
चल गई एक आरी तो जंगल कटा
चल बसा नीम, जग छटपटाता रहा
नीम नीम छाया गहें और निबौली स्वाद
फूल फूल खुशियाँ गहें पात पात संवाद
हम रहवासी गाँव के खग-मृग अपने जीव
धरती अंबर खेत जल जीवन के अनुवाद
-पूर्णिमा वर्मन
२० मई २०१३