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निबिया की छाँव |
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शीतल-शीतल
सी लगी दुपहरिया जिस ठाँव,
नहीं भुलाये भूलती वह निबिया की छाँव!
सखियों की अठखेलियाँ बाबुल का वह गाँव,
रह-रह आती याद है, वह निबिया की छाँव!
जब रोके रूकते नहीं, अल्हड़ता के पाँव,
हुलराती तब गोद ले, वह निबिया की छाँव!
सुनकर मेरी रागिनी, कौवा करता काँव,
खिल-खिल हँसती साथ, में वह निबिया की छाँव!
नाहक ही तो हैं बँधे, बैलों के गरियाँव,
कौन छोड़ सकता भला, वह निबिया की छाँव!
निमकौली के तेल से, डरते पेंचिस-आँव,
दुबके-दुबके ढूँढते, वह निबिया की छाँव!
डर लगता है देखकर, कुटिल विदेशी दाँव,
रहन न हो जाये कहीं वह निबिया की छाँव!
-ओम नीरव
२० मई २०१३ |
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