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नीम अभी भी खड़ा हुआ है
 

 

अपनी जिद पर अडा हुआ है
नीम अभी भी खड़ा हुआ है

कभी नीम की
घनी छाँह में लगती थीं कक्षाएँ
नीम सरीखे आज गुरूजी
ढूँढे नहिं मिल पाएँ
जिन शाखों
पर झूला बचपन
बस यादों में जड़ा हुआ है

स्वच्छ सुगन्धित
वायु कैसे? होगी लम्बी आयु कैसे?
जीवन की कड़वाहट पीकर
क्यों नहिं बने निबौली जैसे,
आओ पूछें –
किसी नीम से
जिसने सबकुछ पढ़ा हुआ है

नीम गया क्यों
घर-से-बाहर?-हुए-भला-क्यों-आँगन-छोटे?
दोष यहाँ गैरों को क्या दें?
अपने ही सिक्के जब खोटे
नीम अनमना
किसी गैर के
घर में देखो पड़ा हुआ है

-नितिन जैन
२० मई २०
१३

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