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बैठ नीम की छाया में
 

 

सड़क किनारे
बैठ नीम की छाया में
कच्ची कैरी
बेच रही है रामकली

घनी धूप है और
तप रही दोपहरी
आग पेट की
सुलग रही गहरी-गहरी

आते-जाते लोग देखकर
नीम तले
रस की ढेरी
बेच रही है रामकली

नए साल में
गये साल की यादों को
जोड़ रही टूटे-बिखरे
संवादों को

घनी घाम में, नीम छाँव में
चेहरों को
ख़ुशी घनेरी
बेच रही है रामकली

-जगदीश पंकज
२० मई २०
१३

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