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छाया घनेरी |
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पहले छाया बौर,
निम्बौरी अब आयीं है नीम पर
शाखाओं पर गुच्छे बनकर, अब छायीं हैं
नीम पर
मेरे पुश्तैनी
आँगन में खड़ा हुआ ये पेड़ पुराना,
शीतल छाया देने वाला, लगता हमको बहुत सुहाना,
झूला डाल बालकों ने भी पेंग बढ़ाई
नीम पर
डाली-डाली पर
फिरती है, उछल-कूद करती जाती है,
करने को आराम रात को, कोटर इसे बहुत भाती है,
एक गिलहरी बच्चों के संग, रहने आयी
नीम पर
बिजली करती
आँख-मिचौली, गर्मी बहुत सताती है
इसके नीचे खाट डालकर, नींद चैन की आती है
कौए-चिड़ियों ने भी अपनी कुटी बनायी
नीम पर।
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री मयंक
२० मई २०१३ |
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