निंबिया बोली
आम से, भूल गया अनुबन्ध।
मै बौरी जब जब मिली, तेरे तन की गन्ध॥
-भारतेन्दु मिश्र
कटता शीशम देखकर, गुमसुम बूढ़ा नीम।
धागा चिटका प्रेम का, रोया बैठ रहीम।।
-हिमांशु मोहन
कल आँगन में रात भर, रोया बूढा नीम।
दो हिस्सों में देखकर, घर-आँगन तकसीम।।
-संजीव गौतम
छप्पर, आँगन, नीम में, अटकी अपनी जान।
कोठी, बँगले शहर के, लगते हैं वीरान।।
-रघुविन्द्र यादव
मधुऋतु का कुछ यों मिला उसको प्यार असीम।
कड़वे से मीठा हुआ सूखा-रूखा नीम ।।
-कुँवर बेचैन
घर आँगन तो हो गए, बेटों में
तक़सीम।
जाने कैसे रहा गया, दरवाज़े का नीम।।
अब मेरे घर गाँव की, बदल गई है थीम।
आँगन में तुलसी नहीं, दरवाज़े पर नीम।।
-अशोक रावत
समझ लीजिए मान्यवर! प्यार हुआ निस्सीम।
शक्कर जैसा स्वाद दें अगर करेला, नीम।।
-हुमा कानपुरी
नीम-गाछ की सारिका, चह-चह करती भोर ।
घटी सूर्य की रोशनी, मचा शहर में शोर ।।
-सुधा गुप्ता
थके मुसाफिर को अगर, मिले नीम की छाँव।
थकन पलों में दूर हो, और न दूखें पाँव ।
चढा करेला नीम पर, बुरा भाव
बतलाय।
किंतु गुणों की दौड़ में, अव्वल वो कहलाय।।
-शरद तैलंग
बात भले कड़वी कहो, पर हो नीम
समान l
औषधि सम जो रोग का देती तुरत निदान ll
शाख, फूल, फल, पात, जड़, अरु मृदु
शीतल छाँव l
परहित झोली में लिए, नीम फिरे हर गाँव ll
-सीमा अग्रवाल
रेशा-रेशा नीम का, आता सबके काम।
टहनी, पत्ती, फूल, फल, मिल जाते बिन दाम।।
-कुँवर कुसुमेश
तन का ताप उतार दे देकर कड़वी नीम।
मन का संशय मेट दे ऐसा कौन हकीम।।
-डॉ. नरेश
नीम-पत्र के चूर्ण मैं, अजवायन इक ग्राम।
गुण संग पीजै पेट के, कीड़ों से आराम।।
-दिनेश आस्तिक
साधु दशा को नहिं गहै, दुर्जन बहु सिखलाय।
दूध घीव से सीचिये, नीम न तदपि मिठाय।।
-चाणक्य नीति
२० मई २०१३