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गाँव गाँव में |
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गाँव-गाँव
में आज भी, दो अति सुलभ हक़ीम।
आँगन में तुलसी दिखे, द्वारे छाए नीम॥
मिलती रहती है जहाँ, शुद्ध-वायु निम छाँव।
रखती बीमारी वहाँ, सहज न अपने पाँव॥
नीम पत्तियाँ ढेर-सी, दीजै जहाँ जलाय।
मच्छर-दल हैं भागते, झटपट पूँछ दबाय॥
हरी पत्तियाँ नीम की, पानी धरो उबाल।
मलिन त्वचा के वास्ते, समझो उसे डिटाल॥
मुख में पैठी बास को, दें दातून ढ़केल।
मंजन-ब्रुस की कंपनी, उसके आगे फेल॥
-डॉ० डंडा लखनवी
२० मई २०१३ |
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