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पंक में पंकज खिलें
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पंक में पंकज खिलें, पर पंखुरी पर पंक ना
है लक्ष्मी के हस्थ पंकज, शारदे पदमासना
जब तलाबों में समय पर, ये कमलदल फूलते
लखि वहाँ की भव्यता, नर-नारि मन हैं ऊलते
भर के गुलाबी प्यालियों में, पीत-सा मकरंद भी
रसिक भँवरे हैं रिझाते, गुन-गुनाकर छन्द भी
मुस्कराते, खिल-खिलाते, रविकिरण सँग प्रात ही
हों मुदित ये नित्य ही, अन्तिम किरण के साथ ही
तैरती हैं देख लो यूँ, नीर - तल पर पत्तलें
पत्तलों पर बूँद जल की, मोतियों - सी बन ढलें
सच ही तलाबों में नहातीं, जब कभी सुकुमारियाँ
तन - मन गुलाबी हों करें ये पंखुरी अठखेलियाँ
सन्तोष कुमार सिंह
२१ जून २०१० |
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